जाते समय रास्ते तो वही दिख रहे थे| वही टूटी- फूटी गड्ढे से भरे हुए सड़क| रोड पर वही "का मर्दे..., का रे..." का शोर, वही पान कि गुमटी पर बजते भोजपुरी गाने| अरे हाँ कुछ तो जरुर बदला था, बहुत कुछ बदला था| कल तक जो महँगुआ केवल गुमटी पर पान बेचता था, उसके दूकान के पोस्टर पर भी उसका फोटो था, और वो भी फ्लैक्स प्रिंटेड| और ये क्या हो रहा था, रिक्सावाला भी गर्दन में मोबाइल लटका कर रिक्सा खींच रहा था| देख कर लगा कि अब सच में "कर लो दुनिया मुट्ठी में" वाली बात यथार्थ में दिखाई दे रही है| रोड पर चलते चलते अचानक गौर किया कि, रंग-बिरंगी तिलंगी जो रोड पर सजे हुए थे किसी राजनितिक दल के नहीं थे, बल्कि अपने नए नए मोबाइल कंपनियों के थे| मैं वही कब से सोचे जा रहा था पहले तो केवल चुनाव और सरस्वती पूजा में ही रोड को तिलंगियों से सजाया जाता था, पर आजकल तो वैसा कुछ नहीं था| चलते चलते एक बहुत ही अच्छे गाने कि आवाज सुने दी, आवाज कि तरफ नज़र दौड़ाया तो देखा कि फोचका वाला अपने मल्टीमीडिया मोबाइल सेट पर गाने बजा कर अपना काम कर रहा था| एक तो इतना अच्छा गाना और फोचका, हम अपने आप को रोक नहीं पाए और चल दिए फोचका खाने के लिए| तभी मेरे फोन कि घंटी बजी अपने फोन को देख कर बड़ा शर्म आया कि, ये फोचका वाला इतना बढ़िया सेट लिए हुए है, और मैं अब भी नोकिया के शुरुआती सेट को ढो रहा था| मैंने उस से कहा, "का हो भैया, का हाल बा?, मोबाइल ता बड़ी बढ़िया लेले बाड़!" उस ने कहा, "महंगाई मार के धइले बा..."| फिर फोचका खाने लगे हम, और वो भी पहले से दोगुने दामों पर| आगे बढ़ने पर देखा कि मठिया जो कल तक संत- सन्यासियों का अड्डा हुआ करता था, वहाँ भी कोई मॉल बनाने के लिए गड्ढा खोदा जा रहा था| बाप रे! ये क्या हो रहा था, एक तो इतना छोटा शहर, अब तक तो पहला मॉल ही नहीं देखा था, कि दूसरा मॉल का प्रस्तावित जगह भी देख लिया, पूरा शहर में मॉल ही बनेगा क्या? और वो मठिया वाली जमीं तो वैसे भी मंदिर की है| फिर बाद में पता चला कि, उस जमीं पर मठ होने के कारण, विवाद हो गया था, और इस लिए काम रुका हुआ है| आगे चलते हुए एक बात गौर किया की कल तक जहाँ अपने शहर में लिट्टी-चोखा की दूकान होती थी आज उस से ज्यादा मोबाइल और रिचार्ज की दूकानें हैं| शहर के घर भी भी अब पहले की तरह नहीं रह गए थे| रोड के सामने वाले हर घर ने अपनी सूरत बदल ली थी| इसी तरह चलते चलते अपने शहर का बदलता हुआ एक नया रूप देखा| देख कर लगा कि अपना ये कस्बाई शहर डेवलप न होकर ग्रो कर रहा है| कुछ भी हो अब यह शहर भी हाइटेक हो रहा है| शहर के होटल भी शीशे से बने हुए दिख रहे थे| उन्ही इमारतों को देखते हुए मैं चल ही रहा था कि, मेरा पैर गड्ढे में पड़ गया| आख़िरकार, मेरे ख्यालों कि उड़ान जमीं पर आ ही चुकी थी|
8/3/10
मेरे शहर का अल्हड़ शहरीपन...
जाते समय रास्ते तो वही दिख रहे थे| वही टूटी- फूटी गड्ढे से भरे हुए सड़क| रोड पर वही "का मर्दे..., का रे..." का शोर, वही पान कि गुमटी पर बजते भोजपुरी गाने| अरे हाँ कुछ तो जरुर बदला था, बहुत कुछ बदला था| कल तक जो महँगुआ केवल गुमटी पर पान बेचता था, उसके दूकान के पोस्टर पर भी उसका फोटो था, और वो भी फ्लैक्स प्रिंटेड| और ये क्या हो रहा था, रिक्सावाला भी गर्दन में मोबाइल लटका कर रिक्सा खींच रहा था| देख कर लगा कि अब सच में "कर लो दुनिया मुट्ठी में" वाली बात यथार्थ में दिखाई दे रही है| रोड पर चलते चलते अचानक गौर किया कि, रंग-बिरंगी तिलंगी जो रोड पर सजे हुए थे किसी राजनितिक दल के नहीं थे, बल्कि अपने नए नए मोबाइल कंपनियों के थे| मैं वही कब से सोचे जा रहा था पहले तो केवल चुनाव और सरस्वती पूजा में ही रोड को तिलंगियों से सजाया जाता था, पर आजकल तो वैसा कुछ नहीं था| चलते चलते एक बहुत ही अच्छे गाने कि आवाज सुने दी, आवाज कि तरफ नज़र दौड़ाया तो देखा कि फोचका वाला अपने मल्टीमीडिया मोबाइल सेट पर गाने बजा कर अपना काम कर रहा था| एक तो इतना अच्छा गाना और फोचका, हम अपने आप को रोक नहीं पाए और चल दिए फोचका खाने के लिए| तभी मेरे फोन कि घंटी बजी अपने फोन को देख कर बड़ा शर्म आया कि, ये फोचका वाला इतना बढ़िया सेट लिए हुए है, और मैं अब भी नोकिया के शुरुआती सेट को ढो रहा था| मैंने उस से कहा, "का हो भैया, का हाल बा?, मोबाइल ता बड़ी बढ़िया लेले बाड़!" उस ने कहा, "महंगाई मार के धइले बा..."| फिर फोचका खाने लगे हम, और वो भी पहले से दोगुने दामों पर| आगे बढ़ने पर देखा कि मठिया जो कल तक संत- सन्यासियों का अड्डा हुआ करता था, वहाँ भी कोई मॉल बनाने के लिए गड्ढा खोदा जा रहा था| बाप रे! ये क्या हो रहा था, एक तो इतना छोटा शहर, अब तक तो पहला मॉल ही नहीं देखा था, कि दूसरा मॉल का प्रस्तावित जगह भी देख लिया, पूरा शहर में मॉल ही बनेगा क्या? और वो मठिया वाली जमीं तो वैसे भी मंदिर की है| फिर बाद में पता चला कि, उस जमीं पर मठ होने के कारण, विवाद हो गया था, और इस लिए काम रुका हुआ है| आगे चलते हुए एक बात गौर किया की कल तक जहाँ अपने शहर में लिट्टी-चोखा की दूकान होती थी आज उस से ज्यादा मोबाइल और रिचार्ज की दूकानें हैं| शहर के घर भी भी अब पहले की तरह नहीं रह गए थे| रोड के सामने वाले हर घर ने अपनी सूरत बदल ली थी| इसी तरह चलते चलते अपने शहर का बदलता हुआ एक नया रूप देखा| देख कर लगा कि अपना ये कस्बाई शहर डेवलप न होकर ग्रो कर रहा है| कुछ भी हो अब यह शहर भी हाइटेक हो रहा है| शहर के होटल भी शीशे से बने हुए दिख रहे थे| उन्ही इमारतों को देखते हुए मैं चल ही रहा था कि, मेरा पैर गड्ढे में पड़ गया| आख़िरकार, मेरे ख्यालों कि उड़ान जमीं पर आ ही चुकी थी|
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4 प्रतिक्रियाएँ:
ashish
u didnt tell abt the mall which had opened in your city, for which u have written the blog.
did you find the mall or was it your friends prank! :)
@harshit:- actually my dress got soiled, so i dint go to the mall.... :)
so this time when i go to the mall i'll blog about that too... :)
Waahhh ... Ara k baare me is se khatrnaak kuch nhi pdha maine ...
Gazab likhe ho guru (y)
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