12/6/10

बड़े दिनों बाद...



बड़े दिनों बाद आज अचानक अपने चिट्ठे पर फिर से लौटा हूँ| पढाई लिखाई के चक्कर में शायद कुछ ज्यादा ही रम गया था, इसलिए अपना चिट्ठा भूल गया था, ऐसा बिलकुल मत सोचियेगा|
समझ तो नहीं आ रहा क्या लिखूं और क्यों...
जैसा इस चिट्ठे का नाम ही 'शायद कल की बात है' है, तो इसलिए कल की ही बात को ले लीजिए...
इन दिनों कॉलेज की छुट्टी चल रही है, और हम कुछ दोस्त अपने नेक इरादों (वाकई में नेक) को कार्यान्वित करने के लिए अभी भी कॉलेज में ही डेरा डाले हुए है, खाना खाने तो बाहर जाना पड़ता है इसलिए आसपास के ढाबे ही एक सहारा हैं| ढाबे हमेशा से ही चर्चा और बहस करने के लिए बड़ी ही अच्छी जगह रहे है| अचानक कल चर्चा शुरू हो गयी दोस्ती के ऊपर...
कॉलेज के ये संघर्ष भरे दिन, ऊपर से दोस्तों का साथ, अच्छा लग रहा है...
परीक्षा कुछ ही दिन पहले खत्म हुई है इसलिए, दिमाग भी खाली खाली सा लग रहा है| दोस्तों के साथ बिताए गए ये पल बेशक पूरी जिंदगी के लिए यादगार रहेंगे| कल की चर्चा मेरे खाली दिमाग में कुछ ज्यादा ही घर कर गयी... इन्हीं बातों को सोच कर मन में कई विचार आ रहे थे...
पर अचानक दोस्ती की ये बातें यहाँ से शुरू होकर यहाँ पर ही अटक ना जाए ऐसी भी अटकलें है|
पर जब बात चल ही गयी है, तो तो दूर तक जायेगी...
मैंने अपने जिंदगी के बीस सोपान ही देखे हैं, इतनी छोटी सी अवधि में दोस्ती जैसी बड़ी चीज पर कोई टिपण्णी करना सही नहीं समझूंगा... मेरे इस उत्सुक दिमाग में अचानक ही ये बात आग की तरह जल रही है की आखिर इंजीनियरिंग कॉलेज की ये चार साल की दोस्ती आखिर कितनी सार्थक हैं और इनमें कितनी गहराई है|
इंजीनियरिंग जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रम में, दोस्ती किस हद तक गहरी हो सकती है अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता| कभी ये लगता है दोस्ती और रिश्तों को निभाने की जो कला हम युवावस्था के इन दिनों में सीखते है वही पूरी जिंदगी तक हमारे जीवन में झलकती है| इन चार सालों में जो हम एक छत के निचे रह कर, एक ही दिक्कत के साथ लड़ते हैं और एक ही खुशी को एक साथ मनाते हैं, इस से दोस्ती की नींव और भी गहरी हो जाती है| बेशक ये दोस्ती, स्कूल के दिनों की दोस्ती से ज्यादा गहरी होती है|
इन बातों में तो कोई दो राय नहीं है की, आपको अपनी जिंदगी के कुछ बहुत अच्छे दोस्त जीवन के इन्हीं सालों में मिलते है|
पर कई बार मन में यह शंका होती है आखिर कब तक इस अल्हड़ता भरी दोस्ती की नैय्या मस्ती की लहरों में गोते लगाते रहेगी| जिंदगी किसी न किसी मोड पर ऐसे इम्तिहाँ जरुर लेगी जब इस दोस्ती की नैय्या भँवरजाल में फंसी होगी| क्या ऐसे समय में दोस्तों के बीच में इतने समझ बचेगी की ये डूबने से बच जायेगी???
ऐसे सवालों का जवाब केवल समय के साये में ही छिपा है|
मेरे इस चिट्ठे में भले मेरी कच्ची मानसिकता झलक रही हो, पर इन विचारों से मैं खुद को मुक्त नहीं कर पा रहा|

1 प्रतिक्रियाएँ:

Ashesh Raghav said...

mere khyal se ashish, dosti ke mool schhol ke dinon me jo boye jaate hain wo shayad adhik gahre hote hain.
waise bahut hi majha hua likha hai tumne !!

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