सपने ज्यादा और नींदें हो गयी है कम...
हँसी ज्यादा और खुशी हो गयी है कम...
धड़कन ज्यादा और सांसें हो गयी हैं कम...
भीड़ ज्यादा और अपने हो गए हैं कम...
क्यूँकि आज बड़े हो गए हैं हम!
नींदों में सपने तो हैं, पर सच्चाई है कम...
हँसी में खुशी तो है, पर जज्बात है कम...
साँसों में धड़कन तो है, पर जिंदगी है कम...
भीड़ में अपने तो हैं, पर अपनापन है कम...
क्यूँकि आज बड़े हो गए हैं हम!
नींद आती तो है, पर कल का डर सोने नहीं देता...
हँसी आती तो है, पर रोने का डर खुश होने नहीं देता...
धडकनें चलती तो हैं, पर उम्र ये साँसें लेने नहीं देता...
अपने मिलते तो हैं, पर ये मुखौटा भरोसा करने नहीं देता...
आखें भर आई हैं आज, कर के याद बचपन...
क्यूँकि आज बड़े हो गए हैं हम!
2 प्रतिक्रियाएँ:
Oh !!!.. Dil chhun gaya ...
Sahi likha hai...
han..aaj bade ho gaye hum...kal badappan au r parso budhappa sab chhin lega au tab akele honge hum...
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