4/21/11

भूल पाना तुमको...


ये कविता मैंने कुछ महीनों पहले लिखी थी... कवि बनने कि कोशिश कर रहा था... अगर कोशिश सफल हुई तो बताईएगा...


बहुत मुश्किल  है...
भूल पाना तुमको...
पता नहीं क्यूँ...


सोचता हूँ शायद...
भूल जाऊंगा तुम्हे,
समय के साथ...


पर इतना भी आसान नहीं...
अपनी भावनाओं को दबा कर रखना...
अपने प्यार का क़त्ल करना...


पता नहीं क्यों हर घड़ी ...
एक आस सी जगती रहती है...
सीने के किसी कोने में...


एक ऐसी अगन जो...
नहीं चाहते हुए भी...
तुम्हे ही याद करती है...


ऐसा लगता है...
शायद कुछ छूट रहा है...
हर घडी, हर पल के साथ...


जिन्दगी की रफ़्तार से...
लड़ रहा हूँ में...
केवल इसलिए की...


शायद कोई तो कल आये...
जो उस कल को फिर से...
दुहराए और मैं जी सकूँ उसे...


उस कल को जिसकी...
कल्पना कभी की थी...
मैंने उन रातों में...


जिन रातों में मैं...
देखा करता था सपने...
जिनमें तुम होती थी...


पर तुम उन सपनों में होकर भी...
ना होने के बराबर ही थी...
फिर भी उस समय...


एक आस थी की...
कल जरूर तुम मिलोगी...
और मैं तुमसे बातें कर सकता था...


पर आज जब बंद हो गए हर...
वो रास्ते जो कभी ...
मिलाया करते थे मुझे तुमसे...


बंद हो गयी वो हर आस...
जिन्हें मैंने कभी किसी समय...
पाला था कही किसी कोने में...


पर ना जाने क्यूँ फिर भी...
बहुत मुश्किल है...
भूल पाना तुमको...

4 प्रतिक्रियाएँ:

Biswadarshi Naik said...

wow... thats a nice poem... क्या लिखते हो भाई !!! मानगए तुमको :)

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Monika said...

kya baat!!

दीपक सिन्हा said...

ab jaan le lo ankur kisi ki ....
superb dear...

एक आस थी की...
कल जरूर तुम मिलोगी...
और मैं तुमसे बातें कर सकता था...

-------bahut sunder pankitiyan-------
kabhi kabhi tere dil me ye khyal aata hoga agar wo hoti to aisa hota agar wo hoti to waisa hota .. :)

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