7/1/13

किच-किच


किच-किच नहीं समझते! अरे! रोड पर बरसात के दिन में जब हवाई चप्पल पहन के निकलते थे, तब कीचड़-पाकी में किच-किच नहीं होता था | नहीं याद आया लगता है अब तक | चलिए बतियाते हैं, बरसात कि बात |
गर्मी के छुट्टी के बाद स्कूल खुलता था, और बारिश शुरू! रेनकोट, छाता, बरसाती, बाटा का सैंडक चप्पल, सब का तैयारी पहले से | बारिश होती थी, भींगते थे, डांट सुनते थे, फिर भी भींगते थे | फिर जो छत पर पानी जमा हो गया उसमें भी छप-छप | जब बहुत तेज बारिश होती थी, कागज के नांव भी चलते थे | फिर बारिश के बाद जो रोड का हाल होता था! पूछिए मत! किच-किच एकदम! और उस किच-किच रास्ते में जगह जगह ईंटा रख के जो लॉन्ग जम्प और बॉडी बैलेंस कराने वाला रास्ता बनता था, अब भी याद है | छोटे-छोटे पाँव और लंबी-लंबी छलांग | गज़ब- गज़ब चीजें याद आती हैं बरसात के नाम पर! बरसात के बाद फिर भुट्टा खाना और कभी-कभी लिट्टी-चोखा का भी माहौल बन जाता था | पता नहीं, क्या था! जो था, अच्छा लगता था | वजह बचपन थी या बेफिक्री... जो भी था अच्छा लगता था |

आज, उत्तराखंड का हश्र देख कर, कुछ समझ नहीं आता, किसको दोष दें, किसे जिम्मेवार ठहराए | बाढ़ तो हमारे बिहार में भी आते रहें हैं, हताहत भी हुए हैं | समझ ये भी नहीं आता क्या किया जाए! मतलब बिलकुल समझ नहीं आता! जरा सोचिये! एक किताब लिखी गयी थी किसी महापुरुष के द्वारा- विज़न २०२०! और उस इंसान ने पता नहीं कितने बार नदियाँ जोड़ने की बात कि होगी | मानता हूँ पहाड़ी बाढ़ का कोई जिम्मेवार नहीं है | पर जो सतह पर होता है, उसके लिए तो कुछ कर सकते हैं | महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कई राज्यों में लोग प्यासे मरते हैं | और बिहार-बंगाल जैसे कई जगहों पर  वही पानी जान ले लेता है | नदियों को कब जोडेंगे हम!!! जब रोड बना सकते हैं, तो नदियाँ क्यूँ नहीं जुड़ती!!! क्यूँ पहाड़ों पर जुल्म करते हैं हम! थोड़ा नदियों को पहाड़ों पर खेलने के बाद सतह पर उनके उर्जा का उपयोग क्यूँ नहीं करते | क्यूँ नदियों के यौवन में उन्हें उकसाया जा रहा है | क्यूँ हिमालय के उग्र रूप को ललकारा जा रहा है | जो प्राकृतिक है उसे वैसे ही रहने दे, वे वैसे ही सुन्दर हैं | उत्तराखंड में भूस्खलन और बादल फटना कोई नयी बात नहीं थी, नयी बात बस इतनी थी कि आज इतने एडवांस तकनीक के होते हुए भी, हम मौसम का अनुमान नहीं लगा पाते, पहाड़ कि गतिविधि, और मिट्टी को समझ नहीं पाते, या सब कुछ जानकार, और समझ कर भी बस महाटीया देते हैं | काहें!!!

अब सरकारों को दोष दे कर क्या फायदा, यहाँ चिचिया कर भी का कर लेंगे हम! झुठो का किच-किच करेंगे खाली | पता नहीं चल रहा, किस पर विश्वास करें, किस पर नहीं, पर सब कुछ जानकर अनजान बनना गलत है | 

चलिए! इ ऊपर त कुछ किच-किच कर दिए, अब कुछ काम बात लिखते हैं...

लिख कर तो कुछ तो होगा नहीं, सबको अपने हाथ बढ़ाने होंगे, बहुतों ने बहुत कुछ खोया है, इसलिए सबके सहयोग से ही कुछ हो सकता है |
अगर आप कि भी इच्छा हो तो 'गूंज' नाम के इस एन.जी.ओ. के माध्यम से आप कुछ सहयोग कर सकते हैं, लिंक है -  http://goonj.org/?page_id=2245

1 प्रतिक्रियाएँ:

Harshit Agrawal said...

sahi baat hai dost.. sab kuch kich-kich sa lag rha hai...

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