(एक अंतरद्वंद को शब्द देने कि कोशिश कि है, फिर भी कुछ बचा रह गया, शब्द ही नहीं जुटा पाया...)
है किसका एहसास ये,
है किसकी ये चाहत,
जाने कैसी है ये बेचैनी,
जाने कैसी है ये उदासी...
अनजान से लगते हैं चेहरे
सब,
बेजान से लगते हैं सपने अब,
जाने कैसी है ये बेरुखी,
जाने कैसी है ये ख़ामोशी...
है कैसी ये कमी जिंदगी में,
है कैसी ये नमी आँखों में,
जाने कैसी है ये बेचैनी,
जाने कैसी है ये उदासी...
-आशीष अंकुर 'अनजान'
(शब्दों की कमी रह गयी, एहसास पूरी तरह नहीं उगल पाया, एक और कोशिश करूँगा कभी, शायद कल...)
2 प्रतिक्रियाएँ:
Good one (y)
Bahut khoob❤️
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