2/27/10

यादों के झरोखों से एक होली...



कई बार भूली बिसरी यादों को अपने नयन पटल के सामने ला कर आप असीम आनंद का अनुभव कर सकते है| उन यादों में सैर करने का मजा अत्यंत ही रोमांचकारी होता है| अभी होली आने को है, और शायद ये पहली बार है जब मैं होली में अपने घर- आरा नहीं गया| सोचता हूँ इस होली उन्ही यादों के रंग में सरोबोर हो कर बिताऊं|

स्कूल के दिनों वाली होली-
होली अक्सर या तो परीक्षा के बीच में या परीक्षा के बाद ही पड़ती थी| कुछ भी हो होली जब भी हो उत्साह वही बराबर होता था| बहुत ही याद आता है वो दिन जब चोरी-छिप्पे रंग लाना एक बहादुरी का काम होता था| जो लड़के चोरी से रंग लाते थे, अपने सभी दोस्तों को दिखाते थे और खुद को तीसमारखां से कम नहीं समझते थे| कुछ तो अपने अविस्कारी दिमाग का प्रयोग कर के स्केच पेन या कलम की स्याही से ही रंग का जुगाड़ कर लेते थे| छुट्टी से पहले वाले दिन ये सब गतिविधियां चरमोत्कर्ष पर होती थी| टीचर्स कुछ खास ही चौकन्ने होते थे उस दिन ताकि कोई स्कूल में होली न खेल पाए| फिर भी हमारा  दिमाग तो हमारे टीचर्स से ज्यादा चलता था, किसी न किसी तरह से स्कूल में लुक्का-छिप्पी वाली होली हो ही जाती थी|
स्कूल से घर लौटते वक्त हमेसा ये डर लगता था कहीं कोई शैतान बच्चा छत से हमारे सफ़ेद स्कूल ड्रेस पर कहीं गीला रंग तो ना पड़ा दे| पुरे शहर में होली की धूम रहती थी| बाजार में चारों तरफ भीड़ होती थी, सभी लोग अपने लिए नयी पोशाक लेने के लिए दूकान दर दूकान घूमते थे| आमिर हो या गरीब सभी अपने जेब के हिसाब से कुछ नया कपडा तो जरुर ही खरीदते थे| पूरा वातावरण होलीमय होता था, चारों तरफ होली के गीतों की धूम होती थी|
अगजा वाले दिन से ही मैं भी होली खेलने के दंगल में कूद जाता था| मैं माँ से टॉफी खरीदने के बहाने पैसे मांग कर मोह्हाले के पीछे वाली दूकान से कुछ पुडिया 'मोहन का जादुरंग' ले आता था| फिर चुपके से छत पर जा कर, बाल्टी भर पानी में घोलकर अपने छत के ऊपर से गली में आते जाते लोगों को पडाता था| फिर शाम में कुछ गाते-बजाते लोगों की टोली होलिका दहन के लिए जलावन और पैसे इकठ्ठा करने आती थी| फिर घर से थोड़ी दूर वाले चौराहे पर सभी लोग इकठ्ठा हो कर होलिका दहन करते थे, और एक अच्छे और रोगरहित नए साल की कामना करते थे|
होली वाले दिन घर के सभी लोग कुछ ज्यादा ही सक्रिय होते थे| माँ, चाची और दीदी चूल्हे पर अपना मोर्चा संभाले रहती थी| और पापा और चाचा शाम की सूखी होली के इंतज़ाम में लगे रहते थे| बचता था मैं अकेला, तो मैं कभी माँ से मांग कर पुए खाता था और कभी पापा को दालान साफ़ करने में मदद करता था| हमारे घर में गीली होली ना के बराबर ही खेली जाती थी| फिर भी इस बीच छत पर जा कर अपने पिचकारी से वायरलेस होली खेल ही लेता था| पूरा दिन का समय तो इसी तरह पुए-पकवान खाने में चला जाता था| शाम में सभी लोग अपने नए- नए कपडे पहनते थे| ऐसा लगता था मनो पूरा मोहल्ला ही किसी फैशन शो में हिस्सा लेने जा रहा हो| सभी अपने उम्र के हिसाब से अपनी टोलियाँ बना लेते थे| आज सभी लोग जात, उंच-नीच को भूल कर एक दूसरे के घर जाते थे| हम बच्चों की अलग ही मस्ती होती थी, रास्ते में जो भी बडे भैया, चाचा या दादा दिखते थे उनके पैरों पर अबीर रखते थे और वो आशीर्वाद स्वरुप हमारे माथे पर अबीर से तिलक करते थे| बहुत ही ज्यादा मजा आता थे ये सब करने में| मोह्हले में सभी के घर जा कर दहीबड़ा, छोला, पुआ आदि खाना और फिर सबको अबीर लगाना| पता नहीं कैसे अबीर गुलाल के सुरुर के कारन या होली के जोश में उस दिन जो भी खाओ सब पच जाता था| इसी तरह घर पर भी जो लोग आते उन्हें पुए-पकवान खिलाते और अबीर लगते| रात में थक कर सो जाते थे| अगले दिन भी सुबह से फिर से घूमने का कार्यक्रम शुरू होता था, पर इस बार अपने रिश्तेदारों के यहाँ| हम पूरे परिवार के साथ सभी रिश्तेदारों के घर जाते और वही शाम वाली हरकत दुहराई जाती थी| और इसी तरह रंगों का त्यौहार होली बीत जाती थी और शुरू होता था फ़ाइनल परीक्षाओं का दौर|

खाना और अबीर लगाना- होली यही थी मेरे लिए उन दिनों| पर आज जब मैं इस बार होली में अपने घर नहीं हूँ इन सभी सभी चीजों को बहुत याद करूँगा| आज तो यहाँ हॉस्टल की होली बस शराब पिने, छेड़खानी करने और कपडे फाड़ने का बहाना बन चुकी है| 'बुरा ना मनो होली है' बोल कर अपने सभी गलत कार्यों को सही साबित करने का एक पर्याय बन चूकी है| ऐसे माहौल में कैसे कोई होली को एक त्यौहार के रूप में मना सकता है?

इन्ही विचारों के साथ आप सभी को अपने तहे दिल से होली की हार्दिक शुभकामनाएँ...

3 प्रतिक्रियाएँ:

Randhir Singh Suman said...

होली की शुभकामनाए.nice

Vivek Ranjan Shrivastava said...

रंगों में सराबोर हुये, इस बार होली में
घर से जो हुये बाहर, इस बार होली में !

जल के राख हो , नफरत की होलिका
आल्हाद का प्रहलाद बचे , इस बार होली में !


छूटे न कोई अरमान , रंग इस तरह मलो
छेड़ो रगों में फाग , इस बार होली में !

इक रंग में रंगी सेना , अच्छी नहीं लगती
खूनी न हों अंदाज , इस बार होली में !

Maria Mcclain said...
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